श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.7.5 
 
 
देशत: कालतो योऽसाववस्थात: स्वतोऽन्यत: ।
अविलुप्तावबोधात्मा स युज्येताजया कथम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  शुद्ध आत्मा एक ऐसी विशुद्ध चेतना है जो कभी भी चेतना से बाहर नहीं होती, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, समय कैसा भी हो, स्थिति कैसी भी हो, सपने कैसे भी हों या कोई भी अन्य कारण हों। तो फिर वह अज्ञानता में कैसे फँस जाता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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