देशत: कालतो योऽसाववस्थात: स्वतोऽन्यत: ।
अविलुप्तावबोधात्मा स युज्येताजया कथम् ॥ ५ ॥
अनुवाद
शुद्ध आत्मा एक ऐसी विशुद्ध चेतना है जो कभी भी चेतना से बाहर नहीं होती, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, समय कैसा भी हो, स्थिति कैसी भी हो, सपने कैसे भी हों या कोई भी अन्य कारण हों। तो फिर वह अज्ञानता में कैसे फँस जाता है?