श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.7.30 
 
 
यज्ञस्य च वितानानि योगस्य च पथ: प्रभो ।
नैष्कर्म्यस्य च सांख्यस्य तन्त्रं वा भगवत्स्मृतम् ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  कृपया विभिन्न यज्ञों के विस्तार तथा योग शक्तियों के मार्गों, ज्ञान के वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) और भक्ति-मय सेवा का उनके विधि-विधानों सहित वणन करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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