श्रीशुक उवाच
एवं ब्रुवाणं मैत्रेयं द्वैपायनसुतो बुध: ।
प्रीणयन्निव भारत्या विदुर: प्रत्यभाषत ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा, जब महर्षि मैत्रेय इस प्रकार से बोल रहे थे तो द्वैपायन व्यास के विद्वान पुत्र विदुर ने यह प्रश्न पूछते समय अत्यंत मधुर ढंग से एक अनुरोध व्यक्त किया।