परेण विशता स्वस्मिन्मात्रया विश्वसृग्गण: ।
चुक्षोभान्योन्यमासाद्य यस्मिन्लोकाश्चराचरा: ॥ ५ ॥
अनुवाद
जैसे ही ईश्वर ने अपने पूरे स्वरूप में विश्व के तत्वों में प्रवेश किया, वे विशाल रूप में बदल गए जिसमें सभी लोक और सभी स्थिर और गतिशील सृष्टियाँ विराजमान हैं।