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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि
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श्लोक 35
श्लोक
3.6.35
एतत्क्षत्तर्भगवतो दैवकर्मात्मरूपिण: ।
क: श्रद्दध्यादुपाकर्तुं योगमायाबलोदयम् ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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हे विदुर, परमात्मा की आंतरिक शक्ति से प्रकट हुए विशाल रूप के दिव्य समय, कार्य और शक्ति का अनुमान या मापन कौन कर सकता है?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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