वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 3: यथास्थिति
»
अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि
»
श्लोक 14
श्लोक
3.6.14
निर्भिन्ने अश्विनौ नासे विष्णोराविशतां पदम् ।
घ्राणेनांशेन गन्धस्य प्रतिपत्तिर्यतो भवेत् ॥ १४ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
जब भगवान के दोनों नासिका द्वार अलग-अलग प्रकट हुए, तब जुड़वां अश्विनी कुमार अपनी-अपनी जगहों पर उनमें प्रवेश कर गए और इसके कारण ही जीव प्रत्येक वस्तु की गंध सूँघ सकते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.