ततो वयं मत्प्रमुखा यदर्थे
बभूविमात्मन् करवाम किं ते ।
त्वं न: स्वचक्षु: परिदेहि शक्त्या
देव क्रियार्थे यदनुग्रहाणाम् ॥ ५१ ॥
अनुवाद
हे परम प्रभु, महत्-तत्त्व से प्रारम्भ में उत्पन्न हुए हम सभी को अपनी कृपा करके यह निर्देश दें कि हमें किस प्रकार से कार्य करना चाहिए। कृपया हमें अपना पूर्ण ज्ञान और शक्ति प्रदान करें ताकि हम परवर्ती सृष्टि के विभिन्न विभागों में आपकी सेवा कर सकें,।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध तीन के अंतर्गत पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है ।