श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.5.41 
 
 
मार्गन्ति यत्ते मुखपद्मनीडै-
श्छन्द:सुपर्णैऋर्षयो विविक्ते ।
यस्याघमर्षोदसरिद्वराया:
पदं पदं तीर्थपद: प्रपन्ना: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के चरणकमल ही सारे पवित्र स्थानों की शरण हैं। पवित्र मनवाले महान ऋषि-मुनि वेदों की पंखों पर सवार होकर सदा आपके कमल जैसे मुखरूपी घोंसले को खोजना करते हैं। उनमें से कुछ सर्वश्रेष्ठ नदी (गंगा) के सहारे आपके चरणकमलों का आश्रय लेते हैं, जो मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति दिला सकता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.