सोऽप्यंशगुणकालात्मा भगवद्दृष्टिगोचर: ।
आत्मानं व्यकरोदात्मा विश्वस्यास्य सिसृक्षया ॥ २८ ॥
अनुवाद
तत्पश्चात महत् तत्व ने भविष्य में आने वाले अनेक जीवों के भंडारों के रूप में स्वयं को कई अलग-अलग स्वरूपों में विभाजित कर लिया। महत् तत्व मुख्यतः अज्ञान के गुण में होता है और यह झूठे अहंकार उत्पन्न करता है। यह भगवान का पूर्ण अंश है, जो रचनात्मक सिद्धांतों एवं फल प्राप्ति के समय की पूर्ण चेतना से युक्त होता है।