श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.5.23 
 
 
भगवानेक आसेदमग्र आत्मात्मनां विभु: ।
आत्मेच्छानुगतावात्मा नानामत्युपलक्षण: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  सभी प्राणियों के मालिक, ईश्वर, सृष्टि से पहले एक अद्वितीय रूप में विद्यमान थे। केवल उनकी इच्छा से ही यह सृष्टि संभव होती है और सभी चीजें फिर से उन्हीं में विलीन हो जाती हैं। इस सर्वोच्च पुरुष को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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