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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता
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श्लोक 19
श्लोक
3.5.19
नैतच्चित्रं त्वयि क्षत्तर्बादरायणवीर्यजे ।
गृहीतोऽनन्यभावेन यत्त्वया हरिरीश्वर: ॥ १९ ॥
अनुवाद
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हे विदुर, यह जरा भी अचंभा की बात नहीं है कि आपने इस प्रकार अनन्य भाव से भगवान को स्वीकार कर लिया है, क्योंकि आप व्यासदेव के वीर्य से उत्पन्न हुए हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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