श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.5.14 
 
 
ताञ्छोच्यशोच्यानविदोऽनुशोचे
हरे: कथायां विमुखानघेन ।
क्षिणोति देवोऽनिमिषस्तु येषा-
मायुर्वृथावादगतिस्मृतीनाम् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ऋषियों, जो लोग अपने दुष्कर्मों के कारण दिव्य कथा-प्रसंगों से विमुख रहते हैं और भगवद्गीता के उद्देश्य से वंचित हो गये हैं, वे दयनीय द्वारा भी दया के पात्र हैं। मैं भी उन पर तरस करता हूँ, क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि कैसे अनंतकाल द्वारा उनकी आयु व्यर्थ हो रही है। वे दार्शनिक विचार, जीवन के सैद्धांतिक चरम लक्ष्यों और विभिन्न अनुष्ठानों की प्रथाओं को अपनाये हुए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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