श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.5.13 
 
 
सा श्रद्दधानस्य विवर्धमाना
विरक्तिमन्यत्र करोति पुंस: ।
हरे: पदानुस्मृतिनिर्वृतस्य
समस्तदु:खाप्ययमाशु धत्ते ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति ऐसी कथाओं का निरंतर श्रवण करता रहता है, उसके लिए कृष्णकथा धीरे-धीरे अन्य सभी बातों के प्रति उसकी उदासीनता को बढ़ाती है। परम आनंद को प्राप्त करने वाले भक्त द्वारा भगवान के चरणकमलों का निरंतर स्मरण तुरंत ही उसके सभी दुखों को दूर कर देता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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