वाम ऊरावधिश्रित्य दक्षिणाङ्घ्रि सरोरुहम् ।
अपाश्रितार्भकाश्वत्थमकृशं त्यक्तपिप्पलम् ॥ ८ ॥
अनुवाद
भगवान अपनी दाहिनी कमलपाद को अपनी बाईं जंघा पर रख कर एक नन्हें बरगद वृक्ष के आधार पर सुस्ताते हुए बैठे हुए थे। यद्यपि, उन्होंने सभी घरेलू सुखोपभोगों का त्याग कर दिया था फिर भी वे उस अवस्था में पूर्णता प्रसन्नचित दिखाई पड़ रहे थे।