श्री शुक उवाच
ब्रह्मशापापदेशेन कालेनामोघवाञ्छित: ।
संहृत्य स्वकुलं स्फीतं त्यक्ष्यन्देहमचिन्तयत् ॥ २९ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने उत्तर दिया : हे प्रिय राजन्, ब्राह्मण का शाप तो केवल एक दिखावा था, पर वास्तव में यह भगवान की परम इच्छा थी। वे अपने असंख्य पारिवारिक सदस्यों को भेज देने के बाद धरती से अंतर्ध्यान हो जाना चाहते थे। उन्होंने अपने आप में इस प्रकार सोचा।