को न्वीश ते पादसरोजभाजां
सुदुर्लभोऽर्थेषु चतुर्ष्वपीह ।
तथापि नाहं प्रवृणोमि भूमन्
भवत्पदाम्भोजनिषेवणोत्सुक: ॥ १५ ॥
अनुवाद
हे मेरे प्रभु, जो भक्त आपके चरणकमलों की दिव्य प्रेम-भक्ति में तल्लीन रहते हैं, उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के क्षेत्र में कुछ भी पाने में कोई कठिनाई नहीं होती। लेकिन हे महान, जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने सिर्फ आपके चरणकमलों की प्रेम-भक्ति को ही अपनाना श्रेष्ठ माना है।