श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  3.31.43 
 
 
देहेन जीवभूतेन लोकाल्लोकमनुव्रजन् ।
भुञ्जान एव कर्माणि करोत्यविरतं पुमान् ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने विशेष प्रकार के शरीर के कारण भौतिक प्राणी अपने कर्मों के अनुरूप एक लोक से दूसरे लोक में भटकते रहता है। इस प्रकार से वह कर्मों में संलग्न होकर निरंतर उनके सुखों का भोग करता रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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