श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.31.41 
 
 
यां मन्यते पतिं मोहान्मन्मायामृषभायतीम् ।
स्त्रीत्वं स्त्रीसङ्गत: प्राप्तो वित्तापत्यगृहप्रदम् ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्व जन्म में स्त्री-आसक्ति के कारण जीव स्त्री का रूप लेता है। अज्ञानतावश माया को अपना पति मानकर सम्पत्ति, सन्तान, घर और अन्य भौतिक साजोसामान देने वाला समझता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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