श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  3.31.40 
 
 
योपयाति शनैर्माया योषिद्देवविनिर्मिता ।
तामीक्षेतात्मनो मृत्युं तृणै: कूपमिवावृतम् ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान द्वारा रची गई स्त्री माया रूपी है, और जो व्यक्ति उसकी संगति करता है और उसकी सेवाएँ स्वीकार करता है, उसे यह बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि यह घास से ढके हुए अंधे कुएँ के समान उसका मृत्यु का मार्ग है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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