श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  3.31.35 
 
 
न तथास्य भवेन्मोहो बन्धश्चान्यप्रसङ्गत: ।
योषित्सङ्गाद्यथा पुंसो यथा तत्सङ्गिसङ्गत: ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  किसी अन्य वस्तु के मोह से उत्पन्न मोह और बंधन उतने पूर्ण नहीं होते जितने कि किसी महिला के मोह से या उन पुरुषों की संगति से होते हैं जो स्त्रियों के प्यासे होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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