श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.31.30 
 
 
भूतै: पञ्चभिरारब्धे देहे देह्यबुधोऽसकृत् ।
अहंममेत्यसद्ग्राह: करोति कुमतिर्मतिम् ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  ऐसे अज्ञान से जीव जो पंचतत्त्वों से निर्मित उसका भौतिक शरीर है, उसको अपना समझ लेता है। इस भ्रम के चलते वह क्षणिक चीज़ों को अपना मान लेता है और इस तरह अंधकारपूर्ण क्षेत्र में उसका अज्ञान बढ़ता जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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