श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.31.27 
 
 
तुदन्त्यामत्वचं दंशा मशका मत्कुणादय: ।
रुदन्तं विगतज्ञानं कृमय: कृमिकं यथा ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  इस असहाय अवस्था में मुलायम त्वचा वाले बालक को मक्खियाँ, मच्छर, खटमल और अन्य कीड़े काटते रहते हैं, उसी तरह जैसे बड़े कीड़े को छोटे-छोटे कीड़े काटते हैं। अपना सारा ज्ञान खो चुका बालक करुण क्रंदन करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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