श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.31.24 
 
 
पतितो भुव्यसृङ्‌मिश्र: विष्ठाभूरिव चेष्टते ।
रोरूयति गते ज्ञाने विपरीतां गतिं गत: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार वह शिशु मल और खून से सना हुआ जमीन पर गिरता है और मल से उत्पन्न कीड़े की तरह तड़पता है। उसका सर्वोच्च ज्ञान नष्ट हो जाता है और वह माया के मोहजाल में रोता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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