कपिल उवाच
एवं कृतमतिर्गर्भे दशमास्य: स्तुवन्नृषि: ।
सद्य: क्षिपत्यवाचीनं प्रसूत्यै सूतिमारुत: ॥ २२ ॥
अनुवाद
भगवान कपिल ने कहा: दस महीने के गर्भस्थ शिशु की भी ऐसी इच्छाएँ होती हैं। लेकिन जब वह भगवान की स्तुति करता रहता है, तो प्रसव के समय की वायु उसे उल्टा करके बाहर निकालती है, जिससे उसका जन्म हो सके।