श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.31.22 
 
 
कपिल उवाच
एवं कृतमतिर्गर्भे दशमास्य: स्तुवन्नृषि: ।
सद्य: क्षिपत्यवाचीनं प्रसूत्यै सूतिमारुत: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कपिल ने कहा: दस महीने के गर्भस्थ शिशु की भी ऐसी इच्छाएँ होती हैं। लेकिन जब वह भगवान की स्तुति करता रहता है, तो प्रसव के समय की वायु उसे उल्टा करके बाहर निकालती है, जिससे उसका जन्म हो सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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