कललं त्वेकरात्रेण पञ्चरात्रेण बुद्बुदम् ।
दशाहेन तु कर्कन्धू: पेश्यण्डं वा तत: परम् ॥ २ ॥
अनुवाद
पहली रात में शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं और पांचवीं रात में यह मिश्रण बुलबुले का रूप धारण कर लेता है। दसवीं रात्रि को यह बढ़कर बेर जैसा हो जाता है और उसके बाद धीरे-धीरे यह मांस के पिंड या अंडे के रूप में परिवर्तित हो जाता है।