श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.31.2 
 
 
कललं त्वेकरात्रेण पञ्चरात्रेण बुद्बुदम् ।
दशाहेन तु कर्कन्धू: पेश्यण्डं वा तत: परम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  पहली रात में शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं और पांचवीं रात में यह मिश्रण बुलबुले का रूप धारण कर लेता है। दसवीं रात्रि को यह बढ़कर बेर जैसा हो जाता है और उसके बाद धीरे-धीरे यह मांस के पिंड या अंडे के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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