श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.31.19 
 
 
पश्यत्ययं धिषणया ननु सप्तवध्रि:
शारीरके दमशरीर्यपर: स्वदेहे ।
यत्सृष्टयासं तमहं पुरुषं पुराणं
पश्ये बहिर्हृदि च चैत्यमिव प्रतीतम् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  अन्य प्रकार के शरीर में निवास करने वाला जीव केवल प्रवृत्ति के अनुसार ही देखता है, वह अपने उस शरीर के अनुकूल और प्रतिकूल ज्ञानेन्द्रियों के संवेदनों को ही जानता है, परंतु मुझे ऐसा शरीर मिला हुआ है, जिसमें मैं अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता हूँ और अपने जीवन के चरम लक्ष्य को समझता हूँ, अतः मैं उन सर्वोच्च व्यक्तित्व भगवान को प्रणाम करता हूँ, जिनके आशीर्वाद से मुझे यह शरीर मिला हुआ है और जिनकी कृपा से मैं उन्हें भीतर और बाहर देख सकता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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