श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.31.18 
 
 
येनेद‍ृशीं गतिमसौ दशमास्य ईश
संग्राहित: पुरुदयेन भवाद‍ृशेन ।
स्वेनैव तुष्यतु कृतेन स दीननाथ:
को नाम तत्प्रति विनाञ्जलिमस्य कुर्यात् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आपकी दया की बदौलत मुझे चेतना मिली है, हालाँकि मैं अभी सिर्फ़ दस महीने का हूँ। पतित आत्माओं के मित्र, श्रीभगवान् की इस अकारण दया के प्रति मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के अलावा और क्या कर सकता हूँ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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