श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.31.13 
 
 
यस्त्वत्र बद्ध इव कर्मभिरावृतात्मा
भूतेन्द्रियाशयमयीमवलम्ब्य मायाम् ।
आस्ते विशुद्धमविकारमखण्डबोधम्
आतप्यमानहृदयेऽवसितं नमामि ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं, शुद्ध आत्मा, अपनी गतिविधियों से बँधा हुआ, माया की व्यवस्था से इस समय अपनी माता के गर्भ में पड़ा हुआ हूँ। मैं उन भगवान् को नमन करता हूँ जो यहाँ मेरे साथ हैं, किन्तु जो अप्रभावित हैं और अपरिवर्तनशील हैं। वे अनंत हैं, किन्तु संतप्त हृदय में देखे जाते हैं। मैं उन्हें सादर नमन करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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