जन्तुरुवाच
तस्योपसन्नमवितुं जगदिच्छयात्त-
नानातनोर्भुवि चलच्चरणारविन्दम् ।
सोऽहं व्रजामि शरणं ह्यकुतोभयं मे
येनेदृशी गतिरदर्श्यसतोऽनुरूपा ॥ १२ ॥
अनुवाद
मैं उस परमेश्वर के कमल चरणों में शरण लेता हूं, जो अपने विविध नित्य रूपों में प्रकट होते हैं और इस दुनिया में विचरण करते हैं। मैं केवल उन्हीं की शरण लेता हूं, क्योंकि वही मुझे सभी भयों से मुक्ति दिला सकते हैं और उन्हीं से मुझे यह जीवन स्थिति प्राप्त हुई है, जो मेरे पाप कर्मों के अनुरूप है।