श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.30.22 
 
 
क्षुत्तृट्परीतोऽर्कदवानलानिलै:
सन्तप्यमान: पथि तप्तवालुके ।
कृच्छ्रेण पृष्ठे कशया च ताडितश्
चलत्यशक्तोऽपि निराश्रमोदके ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  चिलचिलाती धूप में गर्म बालू के रास्ते से होकर जाना पड़ता है, जिसके दोनों ओर दावाग्नि जलती रहती हैं। चलने में असमर्थ होने के कारण सिपाही उसकी पीठ पर कोड़े लगाते हैं और वह भूख तथा प्यास से व्याकुल हो जाता है। दुर्भाग्य से, रास्ते में न तो पीने का पानी मिलता है, न ही विश्राम करने के लिए कोई आश्रय है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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