श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.30.2 
 
 
यं यमर्थमुपादत्ते दु:खेन सुखहेतवे ।
तं तं धुनोति भगवान्पुमाञ्छोचति यत्कृते ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  तथाकथित सुखों हेतु भौतिकवादी अत्यधिक परिश्रम सहित अनेक वस्तुओं का अर्जन करता है, परन्तु कालरूप में परमपुरुष उन सबको नष्ट कर देता है और इसके कारण बँधा हुआ जीव उन वस्तुओं के विनष्ट हो जाने पर शोक करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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