श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.30.10 
 
 
अर्थैरापादितैर्गुर्व्या हिंसयेतस्ततश्च तान् ।
पुष्णाति येषां पोषेण शेषभुग्यात्यध: स्वयम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  वह हिंसा करके इधर-उधर से धन प्राप्त करता है और यद्यपि वह इसे अपने परिवार के भरण-पोषण में लगाता है, स्वयं उस प्रकार के खरीदे भोजन का अल्पांश ही ग्रहण करता है। इस तरह वह उन लोगों के लिए नरक जाता है जिनके लिए उसने अनियमित तरीके से धन कमाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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