अनन्त काल का न कोई आरम्भ है न ही कोई अन्त है। वह इस पापमय संसार के रचयिता भगवान् का प्रतिनिधि है। वह दृश्य जगत का अन्त कर देता है, एक को मृत्यु दे कर दूसरे को जन्म देता है और इस तरह सृजन का कार्य करता रहता है। इसी तरह मृत्यु के देवता यमराज को भी नष्ट करके ब्रह्माण्ड का विलय कर देता है।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध तीन के अंतर्गत उनतीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।