न चास्य कश्चिद्दयितो न द्वेष्यो न च बान्धव: ।
आविशत्यप्रमत्तोऽसौ प्रमत्तं जनमन्तकृत् ॥ ३९ ॥
अनुवाद
भगवान को किसी से कोई प्रेम नहीं है, न ही उनका कोई दुश्मन या मित्र है। लेकिन वे उन्हीं लोगों को प्रेरणा देते हैं जो उन्हें नहीं भूले हैं और जो उन्हें भूल चुके हैं उनका नाश कर देते हैं।