श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.29.38 
 
 
योऽन्त: प्रविश्य भूतानि भूतैरत्त्यखिलाश्रय: ।
स विष्ण्वाख्योऽधियज्ञोऽसौ काल: कलयतां प्रभु: ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान विष्णु, परमेश्वर, जो सभी यज्ञों के भोगी हैं, काल स्वरूप हैं और सभी स्वामियों के स्वामी हैं। वे प्रत्येक के हृदय में प्रवेश करते हैं, वे सभी के आश्रय हैं और प्रत्येक प्राणी का दूसरे प्राणी द्वारा विनाश करने का कारण हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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