श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  3.29.35 
 
 
भक्तियोगश्च योगश्च मया मानव्युदीरित: ।
ययोरेकतरेणैव पुरुष: पुरुषं व्रजेत् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्यारी माँ, हे मनुपुत्री, जो भक्त इस प्रकार से भक्ति और योग साधना करता है उसे केवल भक्ति से परम पुरुष का धाम मिल सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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