श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  3.29.33 
 
 
तस्मान्मय्यर्पिताशेषक्रियार्थात्मा निरन्तर: ।
मय्यर्पितात्मन: पुंसो मयि संन्यस्तकर्मण: ।
न पश्यामि परं भूतमकर्तु: समदर्शनात् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए मुझे उस व्यक्ति से बड़ा कोई नहीं लगता जो मुझसे भिन्न किसी भी रुचि में नहीं लगता और इसीलिए लगातार अपने सारे कर्म और अपना पूरा जीवन—सब कुछ मुझे अर्पित करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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