श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.29.28 
 
 
जीवा: श्रेष्ठा ह्यजीवानां तत: प्राणभृत: शुभे ।
त: सचित्ता: प्रवरास्ततश्चेन्द्रियवृत्तय: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे कल्याणी माँ, जीवात्माएँ अचेतन पदार्थों से बेहतर हैं और इनमें से जो जीवन के लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं। विकसित चेतना वाले जानवर इनसे बेहतर हैं और सबसे श्रेष्ठ वे हैं जिनमें इंद्रियबोध विकसित हो चुका है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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