श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.29.24 
 
 
अहमुच्चावचैर्द्रव्यै: क्रिययोत्पन्नयानघे ।
नैव तुष्येऽर्चितोऽर्चायां भूतग्रामावमानिन: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे माते, यदि कोई पुरुष सही अनुष्ठानों और सामग्री के साथ मात्र देवता की मूर्ति की पूजा करता है और साथ ही समस्त प्राणियों में मेरी उपस्थिति से अनजान रहता है, तो वह कभी मेरे वास्तविक स्वरूप की पूजा नहीं कर पाता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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