सानुबन्धे च देहेऽस्मिन्नकुर्वन्नसदाग्रहम् ।
ज्ञानेन दृष्टतत्त्वेन प्रकृते: पुरुषस्य च ॥ ९ ॥
अनुवाद
आत्मा और पदार्थ के ज्ञान के द्वारा अपनी देखने की शक्ति को बढ़ाया जाना चाहिए और व्यर्थ ही शरीर के रूप में अपनी पहचान नहीं करनी चाहिए, अन्यथा वह शारीरिक संबंधों में ही अटक कर रह जाएगा।