स एष यर्हि प्रकृतेर्गुणेष्वभिविषज्जते ।
अहंक्रियाविमूढात्मा कर्तास्मीत्यभिमन्यते ॥ २ ॥
अनुवाद
जब आत्मा प्रकृति और अहंकार के मोहपाश में बँध जाती है, और शरीर को आत्मा समझने लगती है, तब वह केवल भौतिक कार्यों में ही उलझकर रह जाती है और अहंकार के कारण सोचती है कि वही हर चीज पर नियंत्रण रखती है।