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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा
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श्लोक 43
श्लोक
3.25.43
ज्ञानवैराग्ययुक्तेन भक्तियोगेन योगिन: ।
क्षेमाय पादमूलं मे प्रविशन्त्यकुतोभयम् ॥ ४३ ॥
अनुवाद
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योगीजन दिव्य ज्ञान और त्याग से युक्त होकर अपने शाश्वत लाभ के लिए मेरे चरणकमलों में शरण लेते हैं और इस कारण से कि मैं भगवान हूँ, वे भयमुक्त होकर भगवद्धाम में प्रवेश करने के लिए पात्र हो जाते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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