श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.25.41 
 
 
नान्यत्र मद्भगवत: प्रधानपुरुषेश्वरात् ।
आत्मन: सर्वभूतानां भयं तीव्रं निवर्तते ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि कोई व्यक्ति मुझे छोड़कर किसी अन्य की शरण ग्रहण करता है, तो वह जन्म तथा मृत्यु के भयंकर भय से कभी छुटकारा नहीं पा सकता, क्योंकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हूँ, समस्त सृष्टि का आदि स्रोत हूँ और समस्त आत्माओं का भी परमात्मा हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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