श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 39-40
 
 
श्लोक  3.25.39-40 
 
 
इमं लोकं तथैवामुमात्मानमुभयायिनम् ।
आत्मानमनु ये चेह ये राय: पशवो गृहा: ॥ ३९ ॥
विसृज्य सर्वानन्यांश्च मामेवं विश्वतोमुखम् ।
भजन्त्यनन्यया भक्त्या तान्मृत्योरतिपारये ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  इस तरह से जो भक्त, मुझे सर्वव्यापी, संसार के स्वामी की अनन्य भाव से पूजा करता है, वह स्वर्ग जैसे उच्च लोकों में भेजे जाने अथवा इसी लोक में धन, सन्तति, पशु, घर अथवा शरीर से सम्बन्धित किसी भी वस्तु के साथ सुख पूर्वक रहने की सभी इच्छाओं को त्याग देता है। मैं उसे जन्म और मृत्यु के सागर से पार ले जाता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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