शुद्ध भक्तों के साथ मिलकर उनके माध्यम से भगवान के चरित्रों और गतिविधियों पर चर्चा करना कानों के लिए मधुर एवं हृदय को प्रसन्न करने वाला होता है। इस प्रकार के ज्ञान का अनुसरण करते हुए धीरे-धीरे व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है, उसके बाद वह मुक्त हो जाता है और उसका आकर्षण स्थिर हो जाता है। तत्पश्चात् वास्तविक समर्पण और भक्तिमयी सेवा का शुभारम्भ होता है।