श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.25.25 
 
 
सतां प्रसङ्गान्मम वीर्यसंविदो
भवन्ति हृत्कर्णरसायना: कथा: ।
तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि
श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  शुद्ध भक्तों के साथ मिलकर उनके माध्यम से भगवान के चरित्रों और गतिविधियों पर चर्चा करना कानों के लिए मधुर एवं हृदय को प्रसन्न करने वाला होता है। इस प्रकार के ज्ञान का अनुसरण करते हुए धीरे-धीरे व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है, उसके बाद वह मुक्त हो जाता है और उसका आकर्षण स्थिर हो जाता है। तत्पश्चात् वास्तविक समर्पण और भक्तिमयी सेवा का शुभारम्भ होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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