श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.25.23 
 
 
मदाश्रया: कथा मृष्टा:श‍ृण्वन्ति कथयन्ति च ।
तपन्ति विविधास्तापा नैतान्मद्गतचेतस: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के कीर्तन और श्रवण में निरंतर संलग्न रहकर साधुगण भौतिक कष्टों से दूर रहते हैं क्योंकि वे हमेशा मेरे लीला और कर्मों के विचारों में ही लीन रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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