मदाश्रया: कथा मृष्टा:शृण्वन्ति कथयन्ति च ।
तपन्ति विविधास्तापा नैतान्मद्गतचेतस: ॥ २३ ॥
अनुवाद
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के कीर्तन और श्रवण में निरंतर संलग्न रहकर साधुगण भौतिक कष्टों से दूर रहते हैं क्योंकि वे हमेशा मेरे लीला और कर्मों के विचारों में ही लीन रहते हैं।