मय्यनन्येन भावेन भक्तिं कुर्वन्ति ये दृढाम् ।
मत्कृते त्यक्तकर्माणस्त्यक्तस्वजनबान्धवा: ॥ २२ ॥
अनुवाद
ऐसा साधु दृढ़ निश्चयी भाव से प्रभु की पूरी तरह भक्ति करता है। प्रभु की खातिर वह दुनिया के सभी रिश्तों जैसे पारिवारिक सम्बंध और मैत्री संबंधों का त्याग कर देता है।