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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा
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श्लोक 17
श्लोक
3.25.17
तदा पुरुष आत्मानं केवलं प्रकृते: परम् ।
निरन्तरं स्वयंज्योतिरणिमानमखण्डितम् ॥ १७ ॥
अनुवाद
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उस समय आत्मा अपने को भौतिक अस्तित्व से परे, सदैव स्वयं-प्रकाशित, खंडित नहीं, यद्यपि आकार में बहुत सूक्ष्म रूप से देख सकती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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