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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा
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श्लोक 16
श्लोक
3.25.16
अहंममाभिमानोत्थै: कामलोभादिभिर्मलै: ।
वीतं यदा मन: शुद्धमदु:खमसुखं समम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
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जब मनुष्य शरीर को "मैं" और भौतिक वस्तुओं को "मेरा" समझने के मिथ्या बोध से उत्पन्न कामना और लालच के विकारों से पूर्णतया मुक्त हो जाता है, तो उसका मन शुद्ध हो जाता है। उस शुद्धावस्था में वह तथाकथित भौतिक सुख और दुख की अवस्थाओं से ऊपर उठ जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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