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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 21: मनु-कर्दम संवाद
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श्लोक 44
श्लोक
3.21.44
तथैव हरिणै: क्रोडै: श्वाविद्गवयकुञ्जरै: ।
गोपुच्छैर्हरिभिर्मर्कैर्नकुलैर्नाभिभिर्वृतम् ॥ ४४ ॥
अनुवाद
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इसके तट हिरण, सूअर, साही, नीलगाय, हाथी, लंगूर, शेर, बंदर, नेवले और कस्तूरी मृगों से परिपूर्ण थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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